आरति श्रीजिनराज तिहांरी, करमदलन संतन हितकारी | टेक
सुर-नर-असुर करत तुम सेवा, तुमही सब देवन के देवा | आरती
पंच महाव्रत दुद्धर धारे, राग रोष परिणाम विदारे | आरती
भव-भय-भीत शरन जे आये, ते परमारथ-पंथ लगाये | आरती
जो तुम नाम जपै मनमांही, जनम-मरन-भय ताको नाहीं | आरती
समवसरन-संपूरन शोभा, जीते क्रोध-मान छल लोभा | आरती
तुम गुण हम कैसे करि गावैं, गणधर कहत पार नहिं पावैं | आरती
करुणासागर करुणा कीजे, 'द्यानत' सेवक को सुख दीजे | आरती