मुनि क्षमासागर

सूरज ने कहा- अपने द्वार खोलो मेरी रोशनी तुम्हारी होगी।
वृक्षों ने कहा- मेरे करीब बैठो मेरी छाया तुम्हारी होगी।
नदियों ने कहा- मेरे किनारे आकर हाथ बढ़ाओ मेरी बहती धारा तुम्हारी होगी। मैंने ऐसा ही किया अब रोशनी मेरी है छाया भी मेरी है मेरे जीवन की धारा निर्बाध बहती है।
- मुनि क्षमासागर