गणधर स्वामी

गणधर जैन धर्मानुयायियों में प्रचलित एक उपाधि है। जो अनुत्तर, ज्ञान और दर्शन आदि धर्म के गण को धारण करता है वह गणधर कहा जाता है। इसको तीर्थंकर के शिष्यों के अर्थ में ही विशेष रूप से प्रयोग किया जाता है। गणधर को द्वादश अंगों में पारंगत होना आवश्यक है। प्रत्येक तीर्थंकर के अनेक गणधर कहे गए है। भगवान महावीर स्वामी के 11 गणधर थे। उनके नाम, गोत्र और निवासस्थान इस प्रकार हैं:
1. इंद्रभूति गोतम (गोर्वरग्राम)
2.अग्निभूति गोतम (गोर्वरग्राम)
3.वायुभूति गोतम (गोर्वरग्राम)
4. व्यक्त भारद्वाज कोल्लक (सन्निवेश)
5. सुधर्म अग्निवेश्यायन कोल्लक (सन्निवेश)
6. मंडिकपुत्र वाशिष्ठ मौर्य (सन्निवेश)
7.भौमपुत्र कासव मौर्य (सन्निवेश)
8. अकंपित गोतम (मिथिला)
9. अचलभ्राता हरिभाण (कोसल)
10.मेतार्य कौंडिन्य तुंगिक (सन्निवेश)
11.प्रभास कौंडिन्य (राजगृह)
ये सभी ब्राह्मण थे। इससे ऐसा जान पड़ता है कि भगवान महावीर स्वामी के समय में ब्राह्मणों में ही वैचारिक क्रांति का आरंभ हुआ था।