आज फाल्गुन सुदी अष्टमी से आठ दिन तक चलने वाले महान अष्टाह्निका पर्व आरम्भ हो रहे हैं।यों तो हम सिद्धों की आराधना कभी भी कर सकते हैं पर ये आठ दिन सिद्ध भगवान की आराधना करने के विशेष दिनहोते हैं जब देव भी अपने परिवार सहित इन दिनों में पंचमेरु और नन्दीश्वर द्वीप में विराजमान भगवान की भव्य प्रतिमाओं के दर्शन करते हैं ।हम मनुष्य नन्दीश्वर और पंचमेरु नहीं जा सकते हैं।इसीलिए हमलोग यहीं से भाव सहित इन दिनों में पंचमेरु और नन्दीश्वर द्वीप की पूजा करते हैं।जगह जगह मन्दिरों में सिद्ध चक्र विधान का भी आयोजन किया जाता है।सिद्ध चक्र विधान को सभी विधानों का राजा कहा जाता है जिसमें हमारे बड़े से बड़े पापों को भी काटने की अकाट्य क्षमता होती है।सात सौ सभासदों सहित श्रीपाल राजा को पूर्व जन्म में मुनि का अपमान करने के कारण ऐसा घोर कुष्ठरोग हो गया था कि तीन सौ किलोमीटर की दूरी तक लोग उनके शरीर से आने वाली भयंकर दुर्गंध से व्याकुल थे।ऐसे में मैना सती ने मुनि के वचनों पर दृढ़ आस्था रखते हुए सिद्धचक्र विधान की आठ दिन तक पूजा करके गन्धोदक का जल श्रीपाल व सभी सभासदों पर छिड़का।फिर क्या हुआ हम सब जानते हैं।कुष्ठ एकदम से दूर होकर सबकी कंचन सी काया बन गई ।तभी तो हम पढते हैंश्री सिद्धचक्र का पाठ करो नित ठाठ बाठ से प्राणी।फल पायो मैना रानी,फल पायो मैना रानी ।।