सबसे बड़ी दुविधा/शर्म की बात

आज जैन समाज की सबसे बड़ी दुविधा, सबसे बड़ी शर्म की बात

  1. दुनिया में सेवा त्याग और समर्पण का अलख जगाने वाले समाज में भगवान् वही 24 पर संप्रदाय 4 और उपसंप्रदाय गोत्र असंख्यो में बटा हुवा।
  2. 70% समाज के लोग धनी वर्ग से फिर भी समाज के 30% लोगो के पास रहने को घर नही, घर चलाने को रोजगार नही ।
  3. एक से एक महान दिग्गज सन्त सतियो का सानिध्य फिर भी लोगो में द्वेष स्वार्थ और अहंकार की भावना ।
  4. शादियों के लिए लोग अब गुणवान लड़के या लड़किया नही बल्कि अच्छी पार्टिया खोजते है जिसका परिणाम यह है कि आज सबसे ज्यादा विवाह के पश्चात वैवाहिक संबंधों में दरार पैदा हो गयी है।
  5. समाज में ज्यादातर लोग अपने स्वधर्मी भाई को उठाने के बजाए उसे दबाने की कोशिश करते है जबकि होना यह चाहिए कि स्वधर्मी को पूर्ण सहयोग करना चाहिए ।
  6. अपने कुनबे के लोगो को छोड़ के अन्य सेवा संस्थान खोलकर अन्य लोगो की सेवा करते है और खुद को महान दर्शाते है।
  7. महावीर जयंती के दिन भी अपने समाज और प्रभु के लिए कुछ लोग न तो अपना व्यवसाय बंद करते है 
  8. तीर्थ स्थलों पर धर्मशाला बनाकर कुछ समाजसेवी स्वयं उन धर्मशालाओ का शुल्क लेते है और निस्वार्थ सेवा का ढिंढोरा पीठते है ।
  9. जैनो की संख्या नित प्रतिदिन घट रही है फिर भी समाज में कोई चिंता की लकीरें नही अब तो सरकार ने भी अल्पसंख्यक घोषित कर दिया ।
  10. इतना समृद्ध समाज होने के बाद भी समाज की कोई बैंक या कोई इसी तरह की योजना नही जिससे समाज के युवाओं को रोजगार मिले,घर या जरुरत के लिए पैसा लोन के रूप में मिल सके ।।

आओ मिलकर सोचे 
और बनाएँ अपने समाज को भी 
सुन्दर, स्वच्छ, समृद्ध और प्रगतिशील
सभी समाज-सेवी चिंतन करे 
हमारे युवाओं को रोजगार दे 

नोट: इस सन्देश को सम्पूर्ण जैन समाज के जितने भी समूह हैं सभी में भेजे !

साभार - जय जिनेन्द्र समूह, भारतवर्ष