आज श्रुतपंचमी महापर्व है
आज 30 मई 2017, दिन मंगलवार को श्रुत पंचमी महापर्व है। ज्येष्ट शुक्ल पंचमी की शुभ तिथी को तीर्थंकर भगवान की वाणी लिपिबद्ध हुई थी। अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी से तो समस्त जीवों को कल्याण हेतु ज्ञान प्राप्त हुआ लेकिन बाद में काल के प्रभाव के कारण, मनुष्य की स्मरण शक्ति कम होने लगी अतः हमारे आचार्यों ने विचार किया कि भगवान की साक्षात दिव्यध्वनि के अभाव में भगवान द्वारा प्रतिपादित जीव के कल्याण हेतु ज्ञान क्षय को प्राप्त हो जायेगा इसीलिए उसे लिपिबद्ध करना चाहिए। ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी की शुभ तिथी को पूज्य आचार्य पुष्पदंत व भूतबली महराज द्वारा श्री षटखंडाग़म ग्रंथराज का लेखन कार्य पूर्ण हुआ था। वर्तमान में हम सभी जो भी धर्म के स्वरूप को जान पा रहे हैं वह तीर्थंकर भगवान् की वाणी ग्रंथों मे लिपिबद्ध है, उसको चारित्र रूप धारण करने वाले गुरुओं के माध्यम से प्राप्त कर रहे हैं। आगम ग्रंथ जिनमें भगवान की वाणी लिपि बद्ध है उनको माँ जिनवाणी की संज्ञा दी जाती है। माँ जिनवाणी की आराधना का यह पर्व हम सभी के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है- इस दिन अत्यंत भक्ति भाव के साथ माँ जिनवाणी की पूजन करना चाहिए तथा सभी ग्रन्थों को नए वस्त्र प्रदान करना चाहिए। जिनवाणी आराधना के इस पर्व श्रुत पंचमी पर अनेकों स्थानों पर अत्यंत उल्लास के साथ माँ जिनवाणी की शोभा यात्रा निकाली जाती है। इस पुनीत अवसर पर सामूहिक रूप से माँ जिनवाणी पूजन का आयोजन करना चाहिए। जिनालय में अथवा अपने घर में उपस्थित सभी धार्मिक ग्रंथों को व्यवस्थित करना चाहिए। उन पर नए वस्त्र तथा कवर आदि चढ़ाकर उनकी वैय्यावृत्ति करना चाहिए। इस अवसर पर पूर्व आचार्यों द्वारा रचित ग्रंथ का अध्यन करना चाहिए। तथा संभव हो तो किसी एक ग्रंथ के अध्यन का संकल्प लेना चाहिए। हमारे आचार्य हम सभी को समझाते हैं कि यह दुर्लभ मनुष्य जीवन पाकर भी आप माँ जिनवाणी का अमृत पान नहीं करोगे तो किस गति में जाकर करोगे?
साभार : आयुषी जैन