विषमता में भी अपने को समता के साथ रखना ही ज्ञानी की पहचान : आचार्यश्री
सागर में दोनों पंच कल्याणक एक साथ हो जाते हैं, लेकिन विपुलाचल पर्वत पर भगवान महावीर का बार-बार समोशरण आया। ऐसे ही सागर में बार बार पंच कल्याणक होते रहेंगे। गर्भ कल्याणक उन्हीं के मनाए जाते हैं जिसने तृष्णा को जीत लिया है। जो कि तृष्णा से शून्य है। जिसकी भक्ति व्यथा नियत है। उसे कोई टाल नहीं सकता। लेकिन पुरुषार्थ करना मत छोड़ देना।
यह बात आचार्यश्री विशुद्ध सागर महाराज ने पद्माकर स्कूल में चल रहे पंचकल्याणक महोत्सव के दूसरे दिन मंगल प्रवचन मेें कही। उन्होंने कहा कि अपनी संपत्ति का उपयोग किसी के प्राण के बिघात में मत लगा देना। जो गली गली में पानी की प्याऊ लगा रहे हैं वे अपनी संपत्ति को इसमें लगा रहे है। विषमता के काल में भी अपने को समता के साथ रखना ही ज्ञानी की पहचान है। जगत में अशांति दिलाने की कोई वस्तु है तो उसका नाम तृष्णा है। जगत की अग्रि तो पानी से बुझा सकते हो लेकिन तृष्णा की अग्रि बुझाने के लिए एक मात्र जिनवाणी मां हैं। धर्मसभा के पूर्व आचार्यश्री का पाद प्रच्छालन और शास्त्र भेंट किए गए। इससे पहले आचार्यश्री विशुद्धसागर महाराज के नगर आगमन पर सोमवार की सुबह सकल दिगंबर जैन समाज ने तीन मढिय़ा बस स्टैंड के पास उनकी आगवानी की। श्रीफल भेंटकर आशीर्वाद प्राप्त किया। नगर में विभिन्न स्थानों पर रंगोली सजाकर श्रद्धालुओं द्वारा आचार्यश्री की आरती उतारी गई।
सुबह मकरोनिया चौराहा से विहार करते हुए आचार्यश्री नमकमंडी स्थित पद्माकर स्कूल पहुंचे। तीनबत्ती पर संघी परिवार की ओर से अवनीश, मनीष, प्रतिभा, डॉ दीप्ति, तनिशा, अनुषा आदि ने आचार्यश्री का पाद प्रच्छालन कर आरती उतारी। तरुण कोयला परिवार ने पाद प्रच्छालन किया। पंचकल्याण महोत्सव स्थल पर आचार्यश्री के मंगल प्रवचन हुए। आचार्यश्री की आगवानी करने नगर विधायक शैलेंद्र जैन, संतोष घडी, संतोष पटना, प्रमोद वारदाना, प्रदीप रांधेलिया आदि पहुंचे।
आचार्यश्री की आहारचर्या कमलकांत चौधरी के चौके में हुई। आचार्यश्री के साथ 25 पिच्छि हैं। बांदरी से आचार्यश्री के शिष्य मुनिश्री अनुपम सागर महाराज का ससंघ आचार्यश्री से मिलन हुआ। आहारचर्या के बाद मुनिश्री का विहार नागपुर की ओर हो गया।
साभार: भास्कर