महोत्सव का समापन

आचार्यश्री विशुद्ध सागर महाराज के ससंघ सानिध्य में कटरा नमकमंडी स्थित पद्माकर स्कूल में चल रहे श्री मज्जिनेंद्र पंच कल्याणक जिनविंब प्रतिष्ठा महोत्सव का समापन हुआ। सुबह श्रीजी की विमान शोभायात्रा निकाली गई। जो नगर के मुख्य मार्गों से होकर कार्यक्रम स्थल पहुंची। यहां श्रीजी का विशेष अभिषेक हुआ। 
महोत्सव में प्रतिष्ठित मूर्तियों को गौराबाई दिगंबर जैन मंदिर में विराजमान कराया गया। समापन के बाद धर्मसभा में आचार्यश्री विशुद्ध सागर महाराज ने कहा कि श्रेष्ठ परिणामों का मिलना उत्कृष्ट से उत्कृष्ट पुण्य का ही फल है। जैसे पुष्प स्फुटित होने पर ही सुगंध दूर दूर तक फैलती है। वैसे ही अपने पुण्य को सुरक्षित कर लें तो वह पुण्य स्फुटित गलियों और कुलियों में फैल जाता है। उन्होंने कहा कि आज मानो पूरा सागर उमड़ पड़ा हो। मार्ग पर वो ही चलेगा जिनको मार्ग समझ में आ गया है। कोई किसी के लिए कुछ नहीं करता है। मनुष्य के बराबर अहंकारी प्राणी जगत में दूसरा नहीं होता है। पर का काम कोई नहीं करना चाहता है। पुण्य का आंचल बड़ा होगा तो सब आएंगे और पुण्य का साथ छूट जाए तो कोई नहीं साथ देगा। छुटानी गाय को किसान के छोड़ने के पूर्व उसका बछड़ा भी छोड़ देता है। संपूर्ण समाज को अखंड बनाकर चलना। स्वभाव का अभाव नहीं होता है। जो जितना कम बोलेगा, उसकी वाणी में उतनी अधिक मिठास होगी जो जितना ज्यादा बोलेगा उसकी वाणी में उतनी ज्यादा कड़वाहट होगी। अमित्रों का कोई मित्र नहीं है उसका नाम मां जिनवाणी है। जो कि जन्म से मरण तक साथ देती है। जब कोई साथ नहीं देता है तो मां जिनवाणी साथ देती है। शोभायात्रा में हाथी और बग्घियों में महोत्सव के प्रमुख पात्र परिजनों के साथ सवार थे। वहीं भजन मंडलियां कीर्तन करती चल रही थीं। इस मौके पर प्रतिष्ठाचार्य ब्रह्मचारी जयकुमार निशांत, सनतकुमार-विनोद कुमार रजवांस, उदयचंद शास्त्री, नन्हेभाई शास्त्री, मनीष शास्त्री का पंच कल्याणक महोत्‍सव समिति ने सम्मान किया। 

आचार्यश्री विशुद्ध सागर महाराज के ससंघ सानिध्य में कटरा नमकमंडी स्थित पद्माकर स्कूल में चल रहे श्री मज्जिनेंद्र पंच कल्याणक जिनविंब प्रतिष्ठा महोत्सव का समापन शनिवार को हुआ। सुबह श्रीजी की विमान शोभायात्रा निकाली गई। जो नगर के मुख्य मार्गों से होकर कार्यक्रम स्थल पहुंची। यहां श्रीजी का विशेष अभिषेक हुआ। 
महोत्सव में प्रतिष्ठित मूर्तियों को गौराबाई दिगंबर जैन मंदिर में विराजमान कराया गया। समापन के बाद धर्मसभा में आचार्यश्री विशुद्ध सागर महाराज ने कहा कि श्रेष्ठ परिणामों का मिलना उत्कृष्ट से उत्कृष्ट पुण्य का ही फल है। जैसे पुष्प स्फुटित होने पर ही सुगंध दूर दूर तक फैलती है। वैसे ही अपने पुण्य को सुरक्षित कर लें तो वह पुण्य स्फुटित गलियों और कुलियों में फैल जाता है। उन्होंने कहा कि आज मानो पूरा सागर उमड़ पड़ा हो। मार्ग पर वो ही चलेगा जिनको मार्ग समझ में आ गया है। कोई किसी के लिए कुछ नहीं करता है। मनुष्य के बराबर अहंकारी प्राणी जगत में दूसरा नहीं होता है। पर का काम कोई नहीं करना चाहता है। पुण्य का आंचल बड़ा होगा तो सब आएंगे और पुण्य का साथ छूट जाए तो कोई नहीं साथ देगा। छुटानी गाय को किसान के छोड़ने के पूर्व उसका बछड़ा भी छोड़ देता है। संपूर्ण समाज को अखंड बनाकर चलना। स्वभाव का अभाव नहीं होता है। जो जितना कम बोलेगा, उसकी वाणी में उतनी अधिक मिठास होगी जो जितना ज्यादा बोलेगा उसकी वाणी में उतनी ज्यादा कड़वाहट होगी। अमित्रों का कोई मित्र नहीं है उसका नाम मां जिनवाणी है। जो कि जन्म से मरण तक साथ देती है। जब कोई साथ नहीं देता है तो मां जिनवाणी साथ देती है। शोभायात्रा में हाथी और बग्घियों में महोत्सव के प्रमुख पात्र परिजनों के साथ सवार थे। वहीं भजन मंडलियां कीर्तन करती चल रही थीं। इस मौके पर प्रतिष्ठाचार्य ब्रह्मारी जयकुमार निशांत, सनतकुमार-विनोद कुमार रजवांस, उदयचंद शास्त्री, नन्हेभाई शास्त्री, मनीष शास्त्री का पंच कल्याणक महोत्‍सव समिति ने सम्मान किया।