महापुरुष प्रकाश में नहीं आते, आना भी नहीं चाहते प्रकाश प्रदान में ही उन्हें रस आता हैं उनका कथन किसी श्लोक से कम नहीं उनका लेखन किसी दर्शन से कम नहीं और उनका जीवन किसी शास्त्र से कम नहीं उनका हाथ ही पवित्र पात्र हैं पृथ्वी ही जिनकी सैय्या हैं जिन्हें अप्राप्त की चाह नहीं और प्राप्त का मोह नहीं जो दिगम्बर हैं रोम-रोम में पुरुषार्थ वो परोपकार का सागर लिये अनंत यात्री महापुरुष आचार्य श्री विद्यासागर जी
आनंदमयो ज्ञानमयो विज्ञानमयो आदित्या
आचार्य श्री की उपस्थिति ही विद्या का उदय हैं विद्योदय हैं !
स्त्रोत : विद्योदय