आदमी को खल रहा हैं आदमी,
मरुस्थल सा जल रहा हैं आदमी !
दूसरे का कौर मुँह से छीनकर,
आजकल में पल रहा हैं आदमी !!
आदमी की शक्ल से अब डर रहा हैं आदमी,
आदमी हे मरता हैं मर रहा हैं आदमी !
आदमी को लूट कर घर भर रहा हैं आदमी,
समझ कुछ आता नहीं क्या कर रहा हैं आदमी !!