मै को पहिचाना नही और हिँसा छोड दिया ।
जीवन को जाना नही और जीना छोड दीया ।
वैराग को समझा नही और गृहस्थ छोड दीया ।
धर्म को सीखा नही और धार्मिक बन गये ।
आचरण को जाना नही और नकल करते रहे ।
जैनी तुम्हे अगर है बनना महावीर को आचरण मे लाओ ।
पूजा उनकी बाद मे करना पहले उन्हे पहिचानो ।
मै को शरीर से अलग किया वो तप कहलाया ।
जब तप मे खाना भूल गये वो व्रत कहलाया ।
तप की तालिनता मे कपडे फट कर उतर गये वे दिगम्बर धारी कहलाये । आचरण को अपनाओगे तो तुम भी महावीर बन जाओगे ।
- श्री मति ज्योति जैन (कोलाघाट, कलकत्ता)
जीवन को जाना नही और जीना छोड दीया ।
वैराग को समझा नही और गृहस्थ छोड दीया ।
धर्म को सीखा नही और धार्मिक बन गये ।
आचरण को जाना नही और नकल करते रहे ।
जैनी तुम्हे अगर है बनना महावीर को आचरण मे लाओ ।
पूजा उनकी बाद मे करना पहले उन्हे पहिचानो ।
मै को शरीर से अलग किया वो तप कहलाया ।
जब तप मे खाना भूल गये वो व्रत कहलाया ।
तप की तालिनता मे कपडे फट कर उतर गये वे दिगम्बर धारी कहलाये । आचरण को अपनाओगे तो तुम भी महावीर बन जाओगे ।
- श्री मति ज्योति जैन (कोलाघाट, कलकत्ता)