मेरे गुरूवर
शरद पुर्णिमा सदलगा मे
हर्षोल्लास लाया था ।
इकत्तरस वर्ष पहले एक
बालक धरती पर आया था ।
उनकी दिव्य आभा ने उन्हें
अति विशिष्ट बनाया था ।
त्याग और मोक्षमार्ग पर चलकर
समाज को बहु हर्षाया था ।
मुखपर जिनके शीतल मुस्कान
चेहरे पर है सूरज सा तेज ।
हवा जिनका रूख बतलाती
मेरे गुरूवर की है वो शान ।
सिंह सिंहनी जिन्हें नमन है करते ।
नाग नागिन जिनके प्रवचन है सुनते ।
जहाँ वो जाते धरा मुस्कराती
माटी मे उनकी खुशबू रचती बसती ।
धन्य धान धरती है कहती
कलयुग के महावीर आऐ है।
हमारे गुरूवार विधासागर
महावीर स्वामी के अवतार कहलाऐ है ।
- ज्योति अरूण (कोलाघाट)