गुरूवर की राह

गुरूवर की राह निहारते रह गऐ 
चातुर्मास भोपाल में ,
पंचकल्याणक तय भानपुर हुआ।
गुरूवर का सानिध्य तो ,
एम पी वासियों को नसीब हूआ।

खूब ज्ञान की झरना बही ,
प्रवचन की लहर चली ।
गुरूवर के दर्शनाथ को ,
जनमानस की भीड़ चली ।

आचरण की शुद्धता की ,
नित्य नई राह मिली ।
शास्त्रों, को समझने की ,
गुरूवर रूपी सौगात मिली ।

जीवन के हर पहलू पर, 
अध्यातम का ज्ञान मिला ।
धन्य धान्य हुऐ जनमानस, 
जिन्हें गुरूवर का चातुर्मास मिला ।

हम दुरस्त दुर्गामी ,
राह निहारते रह गऐ ।
गुरूवर के शुद्ध चरण रज को
सिरमोर बनाने तरस गऐ ।


- ज्योति अरूण (कोलाघाट)