चंद्रगिरी तीर्थ


छत्तीसगढ़  में डोंगरगढ़ मां बम्लेशवरी के मंदिर की वजह से देशभर में ख्याति प्राप्त स्थान है। अब यहां की चंद्रगिरी पहाड़ी पर प्रदेश का सबसे बड़ा दिगंबर जैन मंदिर आकार ले रहा है। जिसके निर्माण के लिए राजस्थान से लाए गए 40 लाख टन पत्थर न सिर्फ पहाड़ी पर पहुंचाए गए हैं। साथ ही 200 कलाकार दिन-रात पत्थरों को तराशने में लगे हैं। माना जा रहा है कि इस रफ्तार से 2018 तक मंदिर तैयार हो जाएगा। चंद्रगिरी पहाड़ी के ऊपरी हिस्से में समतल क्षेत्र 78 हजार वर्गफीट है। इसमें से करीब 67 हजार वर्गफीट में मंदिर बनाया जा रहा है। इसकी दीवारों पर हुई कलाकारी राजस्थानी स्थापत्य कला से प्रेरित है। निचला हिस्सा इस तरह तराशा गया है कि लगता है, इसका पूरा भार हाथियों की पीठ (गज पीठ) पर है। अहमदाबाद के आर्किटेक्ट वीरेंद्र त्रिवेदी पत्थरों को तराशने से लेकर उसे स्थापित करने तक सभी काम पर बारीक नजर रखे हुए हैं। मंदिर की नींव के पहाड़ी को 21 फीट गहरा किया गया। उसमें बोल्डर, मशीनरी पत्थरों की फिलिंग करके करीब 22 फीट का प्लींथ लेवल तैयार किया गया। प्लींथ तैयार करने में ही सीमेंट के 55 हजार बैग्स लग गए। यहां से मंदिर का निर्माण शुरू हुआ। प्लींथ से मंदिर के शिखर की ऊंचाई 151 फीट होगी। अभी 46 फीट तक का निर्माण हो गया है। मंदिर की कुल लंबाई करीब 320 और चौड़ाई 210 फीट है। मंदिर में मुख्य रूप से मुख्य भाग, गर्भगृह, गूड मंडप, श्रृंगार मंडप होगा। वहीं मंदिर में स्थापित होने वाली चंद्रप्रभु की प्रतिमा एक ही चट्‌टान से तैयार की गई है। कोटा राजस्थान के पास बिचौलिया क्षेत्र से लाई गई भारी-भरकम चट्‌टान को चार महीने में तराशकर प्रतिमा का रूप दिया गया। इसमें एक भी जोड़ नहीं है और वजन 105 टन है। मंदिर ट्रस्ट के लोगों का कहना है कि पहाड़ी के नीचे प्रतिमा को तराशकर ऊपर पहुंचाने में 25 लाख रुपए खर्च हुए।