सरस्वत्या: प्रसादेन, काव्यं कुर्वन्ति मानवा:।
तस्मान्निश्चल भावेन, पूजनीया सरस्वती।।1।।
श्री सर्वज्ञ मुखोत्पन्न, भारती बहुभाषिणी ।
अज्ञान तिमिर हन्ति, विद्या बहु विकासिनी ।।2।।
सरस्वतीमया दृष्टा, दिव्या कमललोचना ।
हंसस्कन्ध समारूढा, वीणा पुस्तक धारिणी ।।3।।
प्रथमं भारती नाम, द्वितीयं च सरस्वती ।
तृतीयं शारदा देवी, चतुर्थ हंसगामिनी ।।4।।
पंचमं विदुषांमाता, षष्ठं वागीश्वरि तथा ।
कुमारी सप्तमं प्रोक्तं, अष्टमं ब्रहमचारिणी ।।5।।
नमं च जगन्माता, दशमं वरदाभावेत् ।।6।।
वाणी त्रयोदशं नाम, भाषाचैव चतुर्दशं ।
पंचदशं च श्रुतदेवी, षोडशं गौर्निगद्यते ।।7।।
एकानि श्रुतनामति, प्रातरूत्याय य: पठेत् ।
तस्य संतुष्यति माता, शारदा वरदा भवेत् ।।8।।
सरस्वती नमस्तुभ्यं, वरदे काम रूपिणी ।
विद्यारंभ करिष्यामि, सिद्धिभवतु मे सदा ।।9।।
फल
प्रात: एक बार पाठ करने से बुद्धि का विकास होता है।
अन्तराय कर्मनाश हेतु निम्नलिखित मंत्र...
मंत्र:
ऊँ हृीं श्रीं क्लीं मम लाभं अंतराय कर्म निवारणाय स्वाहा।
की एक माला प्रतिदिन फेरे तथा जिन सहस्त्र नाम स्तोत्र का पाठ भी नित्य करें।
साभार: आईएसजे, परिवार