दीक्षा समारोह: आचार्य श्री


'एक दिन पारस पारखी, गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज ने चुपके से अपनी पिच्छी के पंख बिखेर दिये और सहज हो कर बोले- विद्याधर! इस पिच्छिका को पुनः बना सकते हो? न शब्द वहाँ था ही नहीं, सो हाँ कह दिया और विद्याधर ने शास्त्रों में वर्णित विद्याधरों की तरह शीघ्र पीछी बना डाली। गुरु जी ने पीछी देखी और देखते ही कह दिया- ब्रह्मचारी, आपका ज्ञान सही में पीछी लेने योग्य हो चुका है।


और आज ही के दिन महागुरु आचार्य श्री ज्ञान सागर जी महामुनिराज ने 

आषाढ़ सुदी ५ वि.सं. २०२५, तदनुसार ३० जून १९६८ का दिन। स्थान सोनीजी की नसिया। शहर अमजेर । 
दीक्षा समारोह प्रारंभ होता है। ब्र. विद्याधर खड़े होकर गुरुवर की वंदना करते हैं, हाथ जोड़कर दीक्षा प्रदान करने की प्रार्थना करते हैं। गुरुवर का आदेश पाकर विद्याधर वैराग्यमयी, सारगर्भित वचनों से जनता को उद्‍बोधन देते हैं तदुपरान्त विद्याधर ने हवा में उड़ने वाले केशों का लुन्चा करना प्रारंभ कर दिया। अपनी ही मुष्टिका में सिर से इतने सारे बाल खींच ले जाते कि देखने वाले आह भर पड़ते हैं। फिर दूसरी मुष्टिका। तीसरी। फिर सिर के बाल निकालते हुए कुछ स्थानों से रक्त निकल आया है। विद्याधर के चेहरे पर आनंद खेल रहा है। हाथ आ गए दाढ़ी पर। दाढ़ी की खिंचाई और अधिक कष्टकारी होती है। वे दाढ़ी के बाल भी उसी नैर्मम्य से खींचते हैं। हाथ चलता जाता है, बाल निकलते जाते हैं, पूरा चेहरा लहूलुहान हो गया है। श्रावक सफेद वस्त्र ले उनकी तरफ दौड़ पड़ते हैं। वे अपने चेहरे को छूने नहीं देते। बाल खींचते जाते हैं। रक्त बहता जा रहा है। विद्याधर जहाँ के तहाँ / अविचलित खुश हैं। आनन्दमय हैं। केश लुन्च पूर्ण होते ही पंडितों-श्रावकों और अपार जनसमूह के समक्ष गुरु ज्ञानसागरजी संस्कारित कर उन्हें दीक्षा प्रदान करते हैं। विद्याधर वस्त्र छोड़ देते हैं दिगम्बरत्व धारण कर लेते हैं। तभी एक आश्चर्यकारी घटना घटी। राजस्थान की जून माह की गर्मी और खचाखच भरे पांडाल में २०-२५ हजार नर-नारी। समूचे प्रक्षेत्र पर तेज उमस हावी थी। लोग पसीने से नहा रहे थे। वातावरण ही जैसे भट्टी हो गया हो। जैसे ही विद्याधर ने वस्त्र छोड़े, पता नहीं कैसे कहाँ से बादल आ गए और पानी की भीनी-भीनी बौछार होने लगी, हवाएँ ठंडी हो पड़ी, वातास शांति एवं ठंडक अनुभव करने लगा। ऐसा लगा कि प्रकृति साक्षात् गोमटेश्वरी दिगम्बर मुद्रा का महामस्तकाभिषेक कर कर रही हो अथवा देवों सहित इन्द्र ने ही आकर प्रथम अभिषेक का लाभ लिया हो। कुछ समय बाद पानी रुक गया। सूर्य ने पुनः किरणें बिखेर दीं। सभी दंग रह गए, कहने लगे यह तो महान पुण्यशाली विद्यासागरजी की ही महिमा है। सभी अपने-अपने मनगढ़ंत भाव लगाकर विद्याधर के पुण्य का बखान कर रहे थे। वहीं छोटे बालक कह रहे थे विद्याधर ने जैसे ही धोती खोली वैसे ही इन्द्र का आसन काँप गया सो उसने खुशी जताने के लिए नाच-नाचकर यह वर्षा की है। ज्ञानसागरजी पिच्छी कमण्डल सौंपते हैं और मुनिपद को संबंधित निर्देश देते हैं। दीक्षा संपन्न।
संयम स्वर्ण महोत्सव डोंगरगढ़ २८/०६/२०१७ 

आईसपोर्टजैनिज़्म परिवार की ओर से गुरुचरणों में शत् शत् नमन।

!! नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु भगवन !!