शरद पूर्णिमा चन्दा उतरा श्रीमती माँ के द्वारे

शरद पूर्णिमा चन्दा उतरा
श्रीमती माँ के द्वारे
पिता मल्ल्प्पा ऐसे हर्षे
दुख भूल गये सारे
सारे गगन में खुशियाँ छाई
नर नारी मंगल गायें
श्रीमती माँ का राजदुलारा सबको खूब सुहाए
बोलो जय जय जय बोलो जय जय जय
ज्ञान गुरु ने विद्याधर को विद्यासागर बना दिया
नीर बूँद को सिन्धु बनाकर आगम का रस पिला दिया
ज्ञान सूर्य के तेज़ प्रकाश में आत्म तत्व को जान लिया
जिनवाणी की छाया में निश दिन आतम ध्यान किया
उनके तप को देख़ सभी ने अपने शीश झुकाए
श्रीमती माँ का राजदुलारा सबको खूब सुहाए
बोलो जय जय जय बोलो जय जय जय
चेहरे पर उनके, मुस्कान सदा ही रहती
उनके दर्शन पाके मुरझाई कली खिल जाती
तप की इतनी गर्मी, सर्दी न छू पाती
मन है इतना शीतल, गर्मी पास न अाती
अपने आशीष वचनों की माला हमें पहनाएं
श्रीमती माँ का राजदुलारा सबको खूब सुहाए
बोलो जय जय जय बोलो जय जय जय
चहुँ दिशाओं का बाना ओढे रहते सदा दिगम्बर
सीधे सरल विद्या गुरु है, न रखते कोई आडम्बर
वीर झलकते है उनमें, जब करते आतम चिंतन
दर्शन मूलाचार के, है समयसार के अद्भुत दर्शन
विद्या गुरु सा एक सितारा नील गगन में छाए
श्रीमती माँ का राजदुलारा सबको खूब सुहाए
अपनी मधुर वाणी से जिनवाणी रसपान कराएँ
श्रीमती माँ का राजदुलारा सबको खूब सुहाए
बोलो जय जय जय बोलो जय जय जय
हम सब मिलकर नमन करे, गुरुवर का आशीष पायें।

रचना: डाली जैन 
साभार: आयुषी जैन
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