उत्तर - अनादिनिधन मंत्र - यह मंत्र शाश्वत है, न इसका आदि है और न ही अंत है।
अपराजित मंत्र - यह मंत्र किसी से पराजित नहीं हो सकता है ।
महामंत्र - सभी मंत्रों में महान् अर्थात् श्रेष्ठ है ।
मूलमंत्र - सभी मंत्रों का मूल मंत्र अर्थात् जड़ है, जड़ के बिना वृक्ष नहीं रहता है, इसी प्रकार इस मंत्र के अभाव में कोई भी मंत्र टिक नहीं सकता है ।
मृत्युंजयी मंत्र - इस मंत्र से मृत्यु को जीत सकते हैं अर्थात् इस मंत्र के ध्यान से मोक्ष को भी प्राप्त कर सकते हैं ।
सर्वसिद्धिदायक मंत्र - इस मंत्र के जपने से सभी ऋद्धि सिद्धि प्राप्त हो जाती है ।
तरणतारण मंत्र - इस मंत्र से स्वयं भी तर जाते हैं और दूसरे भी तर जाते हैं ।
आदि मंत्र - सर्व मंत्रों का आदि अर्थात् प्रारम्भ का मंत्र है ।
पंच नमस्कार मंत्र - इसमें पाँचों परमेष्ठियों को नमस्कार किया जाता है ।
मंगल मंत्र - यह मंत्र सभी मंगलों में प्रथम मंगल है ।
केवलज्ञान मंत्र - इस मंत्र के माध्यम से केवलज्ञान भी प्राप्त कर सकते हैं ।
प्रश्न : णमोकार मंत्र कहाँ कहाँ पढ़ना चाहिए ?
उत्तर - दुःख में, सुख में, डर के स्थान, मार्ग में, भयानक स्थान में, युद्ध के मैदान में एवं कदम कदम पर णमोकार मंत्र का जाप करना चाहिए । यथा - दुःखे - सुखे भयस्थाने, पथि दुर्गे - रणेSपि वा ।
श्री पंचगुरु मंत्रस्य , पाठ : कार्य : पदे पदे ॥
प्रश्न : क्या अपवित्र स्थान में णमोकार मंत्र का जाप कर सकते हैं ?
उत्तर - यह मंत्र हमेशा सभी जगह स्मरण कर सकते हैं, पवित्र व अपवित्र स्थान में भी, किंतु जोर से उच्चारण पवित्र स्थानों में ही करना चाहिए । अपवित्र स्थानों में मात्र मन से ही पढ़ना चाहिए ।
प्रश्न : णमोकार मंत्र ९ या १०८ बार क्यों जपते हैं ?
उत्तर - ९ का अंक शाश्वत है उसमें कितनी भी संख्या का गुणा करें और गुणनफल को आपस में जोड़ने पर ९ ही रहता है ।
जैसे ९*३ =२७ , २ + ७ = ९ कर्मों का आस्रव १०८ द्वारों से होता है , उसको रोकने हेतु १०८ बार णमोकार मंत्र जपते हैं । प्रायश्चित में २७ या १०८ , श्वासोच्छवास के विकल्प में ९ या २७ बार णमोकार मंत्र पढ़ सकते हैं ।
प्रश्न : आचार्यों ने उच्चारण के आधार पर मंत्र जाप कितने प्रकार से कहा है ?
उत्तर - वैखरी - जोर जोर से बोलकर मंत्र का जाप करना चाहिए जिसे दूसरे लोग भी सुन सकें ।
मध्यमा - इसमें होंठ नहीं हिलते किंतु अंदर जीभ हिलती रहती है ।
पश्यन्ति - इसमें न होंठ हिलते हैं और न जीभ हिलती है इसमें मात्र मन में ही चिंतन करते हैं ।
सूक्ष्म - मन में जो णमोकार मंत्र का चिंतन था वह भी छोड़ देना सूक्ष्म जाप है । जहाँ उपास्य उपासक का भेद समाप्त हो जाता है । अर्थात् जहाँ मंत्र का अवलंबन छूट जाये वो ही सूक्ष्म जाप है ।
प्रश्न : इस मंत्र का क्या प्रभाव है ?
उत्तर - यह पंच नमस्कार मंत्र सभी पापों का नाश करने वाला है । तथा सभी मंगलों में प्रथम मंगल है । यथा -
एसो पंच णमोयारो सव्वपावप्पणासणो ।
मंगलाणं च सव्वेसिं पढमं होई मंगलं । ।
मंगल शब्द का अर्थ दो प्रकार से किया जाता है ।
मंङ्ग = सुख । ल = ददाति , जो सुख को देता है , उसे मंगल कहते हैं ।
मंगल - मम् = पापं । गल = गालयतीति = जो पापों को गलाता है , नाश करता है उसे मंगल कहते हैं ।
मंत्र के प्रभाव से -
पद्मरुचि सेठ ने बैल को मंत्र सुनाया तो वह सुग्रीव हुआ ।
रामचंद्र जी ने जटायु पक्षी को सुनाया तो वह स्वर्ग में देव हुआ ।
जीवंधर कुमार ने कुत्ते को सुनाया तो वह यक्षेन्द्र हुआ ।
अंजन चोर ने मंत्र पर श्रद्धा रखकर आकाश गामिनी विद्या को प्राप्त किया ।
साभार: श्रीमति सुमन जैन सुरखी