रामटेक की जागी आशा विद्यागुरु का मिला चौमासा

रामटेक की जागी आशा
विद्यागुरु का मिला चौमासा
मैं मूक माटी हूँ,
माटी हूँ एक पवित्र भूमि की
मैं भूमि हूँ,
पावन भूमि हूँ रामटेक की
जहाँ भगवान राम ने
वनवास में टेक ली
जहाँ इस युग के भगवन
की विशेष अनुकम्पा रही
जहाँ संत शिरोमणि ने
चार चार चातुर्मास किये हों
24 मुनि और 2 अर्यिका
ऐसे 26 महाव्रती दिए हों
नि:शब्द हुए सब, नि... शब्द से
निस्वार्थ सहित सब मुनि बने
निर्वाण के पथ चलने वाले से
24 बालयति मुनि बने
और जो इतिहास बना हो
गुरु शिष्य मिलन का
और ऐसा मिलन
जो सारी कल्पनाओं से परे था
ऐसा मिलन जहाँ एक शिष्य
गुरु चरणों से ऐसे लिपटा
जैसे एक नन्हा का बालक
वर्षो बाद अपने पिता से मिला
जहाँ एक शिष्य के नयन सुधा
गुरु पग प्रक्षालन कर रहे थे
तो गुरु चरण से निकले
गंधोदक को शिरोधार्य कर रहे थे
ऐसे से संत शिरोमणि
गुरु पग तले गर्व से आते हैं
तभी तो हम
पावन भूमि कहलाते हैं
रामटेक के गौरव शाली क्षण
पुनः सौभाग्य से आ रहे है
पंचम युग के भगवन
पंचम चौमासा करने आ रहे हैं। 
अनियत विहारी गुरुदेव विद्यासागर जी महाराज
के पावन चरण युगल में बारम्बार नमोस्तु

शब्दांकन: एक गुरु भक्त
साभार: राहुल जैन

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