विद्यागुरु वाणी चंन्द्रगिरी डोंगरगढ से

प.पू आचार्य गुरुवर श्री विद्यासागर जी 
संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने एक दृष्टान्त के माध्यम से बताया की अडोस - पड़ोस में दो किसान रहते थे उनके पास सैकड़ों एकड़ जमीन थी लेकिन उस जगह दूर - दूर तक पानी नहीं होने के कारण उनकी आँखों में पानी था। एक दिन एक किसान एक व्यक्ति को लेकर आता है और अपनी जमीन दिखाता है फिर जमीन देखने के बाद वह उचित स्थान पर खोदाई कराकर कुवां बनाता है जिससे पानी लेकर किसान भगवान् का अभिषेक करता है और अपनी खेती किसानी में लग जाता है। 
                     इसे देखकर पडोसी दूसरा किसान भी अपनी जमीन पर कुवां खुदवाता है और उसमे जल की मात्रा पहले वाले किसान से अधिक होती है। दूसरे किसान के कुवें में जल की मात्रा अधिक होने के कारण पहले किसान को इर्ष्या के कारण उकसे भाव बिगड़ जाते हैं और वर्षा काल में उसके कुवें का पानी और कम होने लगता है और धीरे - धीरे उसका कुवां पूरा सुख जाता है जबकि दूसरे किसान का कुवां और लबालब भर जाता है। 
                        आचार्य श्री कहते हैं की आज कल पानी भी बोतलों में बिकता है जिसका दाम १५ से २० रुपये प्रति लीटर है जबकि प्रकृति में जल, मिट्टी और वायु (ऑक्सीजन) निशुल्क उपलब्ध है। आज लोग गांवों से जल, मिट्टी और वायु (ऑक्सीजन) को पैक कर शहर में बेचकर व्यापार कर रहे हैं जबकि चंद्रगिरी में जल, मिट्टी और वायु (ऑक्सीजन) निशुल्क उपलब्ध है। किसान खेती की जगह व्यापार एवं पैसे की ओर बढ़ रहा है। 
                        मनुष्य में दया एवं करुणा का अभाव होता जा रहा है और हर चीज का दाम लगाकर उसे बेचा जा रहा है।  सरस्वती और लक्ष्मी दोनों को बहने कहा जाता है जिसके पास ये दोनों है मतलब उसकी बुद्धि ठीक है और जिसके पास लक्ष्मी है लेकिन सरस्वती नहीं है तो वह लक्ष्मी उसके पास ज्यादा दिन नहीं रहेगी और जिसके पास दोनों नहीं है मतलब उसको पुरुषार्थ की आवश्यकता है तभी कुछ हो पायेगा।
                          योग से ज्यादा प्रयोग को महत्वपूर्ण माना गया है। अगर आपका योग अच्छा है आपको कोई चीज मिल भी जाती है परन्तु आपको उसका उपयोग या प्रयोग नहीं मालूम है तो वह चीज आपके कोई कामकी नहीं होगी। पहला किसान दूसरे किसान के पास जाता है और कहता है की तुमने सुरंग बनाकर मेरे कुवें के जल को अपने कुवें में ट्रान्सफर कर लिया है जबकि उस समय तो बोरवेल - पंप आदि नहीं होते थे तो ऐसा करना असंभव था। 
पहले किसान की इर्ष्या के कारण बुद्धि भ्रष्ट हो गयी थी।  आज संयम की कमी के कारण भी लोग पथ भ्रष्ठ हो जाते हैं और पाप कर्म का बन्ध करने लगते हैं। अच्छे कर्म से बुरे कर्म की निर्जरा होती है और अच्छे कर्म दया - करुणा भाव से करते रहना चाहिए जिससे पुण्य बढता रहे। 
विशेष सूचना: आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी के पचासवें दीक्षा दिवस को संयम स्वर्ण महोत्सव के रूप में समस्त भारत वर्ष में मनाया जायेगा। जिसकी पुस्तिका (पत्रिका) का विमोचन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी के ससंघ सानिध्य में श्री विनोद जैन (कोयला), श्री विनोद बडजात्या, श्री किशोर जैन, श्री सुभाष चन्द जैन, श्री निर्मल जैन एवं चंद्रगिरी के ट्रस्टीयों के द्वारा आचार्य श्री को श्रीफल भेंट कर किया गया। 

भारतवर्षीय सकल दिगम्बर जैन समाज,राष्ट्रीय संयम स्वर्ण महोत्सव समिति एवं चंन्द्रगिरी तीर्थक्षेत्र कमेटी डोंगरगढ सभी धर्म प्रेमी बन्धुवों से ससम्मान आग्रह करती है कि 28,29,30 जून 2017 को आचार्य श्री से प्रत्यक्ष आशीर्वाद प्राप्त करने एवं आचार्य श्री के ससंघ सानिध्य में संयम स्वर्ण महोत्सव में शामिल होने के लिए चंन्द्रगिरी डोंगरगढ अवश्य पधारें।