"सम्मेदशिखरजी का भविष्य"
1-श्रावण मास में प्रतिदिन हजारों काॅवडिया पारसनाथ टोंक पर जल फूल पत्ती भांग धतूरा नारियल चढाने लगे हैं।
2-हमारे पुजारी उन्हें रोकने में असमथॅ हैं कई कारणों से।
3-पूवॅ मुख्यम॔त्री झारखंड पूरे पवॅत को आदिवासियों के गुरु का स्थान अधिकारपूवॅक घोषित कर चुके हैं व आदिवासियो को हक के लिए भडकाते हैं।
4-न्यायालय के निणॅय के अनुसार हम जैनों का (सभी जैनों का) स्वामित्व सिफॅ 24 टोकों की 0,86 एकड भूमि पर है शेष पूरा पवॅत वन विभाग का है।
क्या हम उस दिन की कल्पना करें जब हमें वंदना करने के लिए शासन अनुमति लेनी पडेगी या फिर आदिवासियों के विरोध के कारण सशस्त्र बलों की सुरक्षा में वंदना को बाध्य होना पडेगा।
या फिर पारसनाथ भगवान की जय बोलने पर डंडे का प्रहार " गिरनारजी की तरह झेलना पडेगा ?
या फिर केशरियाजी की तरह हिंसात्मक घटना का कडवा घूंट पीना पडेगा ?
या फिर अंतरीक्ष पाश्वॅनाथ-सिरपुर की तरह सामाजिक द्वंद का अंतहीन दंश सहने को बाध्य होना पडेगा ?
यदि अभी भी सम्पूर्ण जैन नहीं जागा तो कब जागेगा।
सभी पंथों के पदाधिकारियों की अजेॅट बैठक आहूत कर, समस्या के निदान हेतु आवश्यक कायॅवाही अपरिहार्य है।जिसमें झारखंड प्रशासन /मंत्रालय को अवगत कराने से लेकर मधुवन ऐवं पवॅत /टोकों की वंदना पूजन के जैनों के शास्वत अधिकारों की रक्षा धनबल, जनबल, राजनैतिक बल से सुरक्षित करना है।शिखरजी पवॅत पर उपलब्ध जमीन के टुकडों को भविष्य के लिए खरीदना भी सामयिक होगा।
तीथॅक्षेत्र कमेटी को पहल करनी ही होगी यदि शिखरजी को बचाना है तो।
जय जिनेन्द्र
आपका
सुधीर जैन
साभार: पीयूष जैन, इंदौर
18 जुलाई 17
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